****चंद मुक्तक होली में***
मगन धरती मगन अंबर,मगन संसार होली में।
खिले चंपा खिले बेला, खिले कचनार होली में।।
मंजरी आम की महके,कृषक बांछे खिलीं देखो।
गुलों से तितलियां करतीं,शरारत यार होली में।।
प्रकृति की रंगने सूरत, चला मधुमास होली में।
रसिक रसियों की रंगत में, रचाएं रास होली में।।
गीत फागुन के कोयल, गा रही ले कंठ शहनाई।
सजी सरसों सजी अलसी ,सजे पलाश होली में।।
रोशनी दे रही पूनम की तिथि, उपहार होली में।
भ्रमर को दे रहीं कलियां,जिगर का प्यार होली में।।
हवा भी बाबरी बनकर,लगी खुशबू को महकाने।
सजन को देखकर सजनी, करे सिंगार होली में।।
पक रहे जौ मटर गेहूं, मुदित है हार होली में।
सजे बच्चों से बूढ़ों तक,सजा घर द्वार होली में।।
बनीं गुजियां बरख पापड़,बने ऐसे बनीं चंदियां।
लुभाता है नई सौदा भरा, बाज़ार होली में।।
जला डालो कपट कूड़ा,चलो त्योहार होली में।
न हो तकरार होली में, वहे रसधार होली में।।
मिटाकर नफरतें दिल से,बहाओ प्यार की गंगा।
गरीबों में अमीरों बांट दो,उपहार होली में।।
कोई काला कोई पीला कोई है लाल होली में।
ठिठोली कर रहे मिलकर, सभी खुशहाल होली में।।
रंगी भाभज रंगे देवर,रंगी साली रंगे जीजा।
रंगे छैला छबीली गोरियों के गाल होली में।।
मुक्तककार कवि सत्येन्द्र पाठक निडर
अहरई जैथरा एटा