ऋषिकेश, 15 मार्च। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और आध्यात्मिक संगठन ‘हार्टफुलनेस’ द्वारा कान्हा शान्ति वनम् हैदराबाद में ’वैश्विक आध्यात्मिक महोत्सव’, का आयोजन किया गया। जिसमें परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी सहित विभिन्न आध्यात्मिक संगठनों, आस्थावान साधकों और पूज्य संतों ने सहभाग कर उद्बोधन दिया। यह दिव्य आध्यात्मिक संगम, दुनिया के सबसे बड़े ध्यान कक्ष ’कान्हा शांति वनम्’में आयोजित किया गया जिसमें भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू का पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ।
राष्ट्रपति श्रीमती दोपद्री मुर्मू ने कहा कि इस आध्यात्मिक महोत्सव में भाग लेकर अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। यहां से जो आन्तरिक शान्ति से वैश्विक शान्ति का संदेश प्रसारित किया जा रहा है इसकी पूरे विश्व को आज जरूरत है। यह महोत्सव मानवता के कल्याण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। भारत भूमि लोकतंत्र व अध्यात्मबोध की जननी है। उन्होंने कहा कि परस्पर सहयोग विश्व शान्ति के लिये जरूरी है। अध्यात्मिक चेतना का यह महोत्सव पूरी मानवता की एकता का महोत्सव है। हमारी संस्कृति के केन्द्र में विश्व भावना समाहित है। सब को समभाव से देखने वाला व्यक्ति ही योगी है और यही हमारी संस्कृति का आधार भी है। आध्यात्मिकता व नैतिकता दैनिक जीवन का आधार है।
मार्गदर्शक, हार्टफुलनेस कमलेशजी पटेल, दाजी ने इस आयोजन के लिये संस्कृति मंत्रालय का अभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इसके माध्यम से सौहार्दता और आन्तरिक शान्ति के साथ वैश्विक शान्ति का स्थापना करना है। आध्यात्मिकता के माध्यम से आंतरिक शांति कैसे प्राप्त की जाए इस पर विशेष उद्बोधन दिया। उन्होंने समाज में समरसता व सद्भाव की स्थापना हेतु सभी आध्यात्मिक संगठनों को मिलकर प्रयास करने हेतु प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि सभी धर्म और सभी समुदाय मिलकर कार्य करेंगे तो एक दूसरे के विचारों को समझेंगे और इससे आपसी मतभेदों को भी कम किया जा सकता हंै। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भारत की राष्ट्रपति माननीया श्रीमती द्रोपदी मुर्मू जी शान्ति व शक्ति स्वरूपा हैं। आपको पाकर पूरा भारत धन्य है। दाजी को सम्बोधित करते हुये कहा कि गुरू टच और ट्रांसफार्मे करते हैं। कई बार अनेक तीर्थ भी एक संत पैदा नहीं कर सकते परन्तु एक संत हजारों तीर्थ बना सकता है उसी प्रकार दाजी ने कान्हा शान्ति वनम् के रूप में दिव्य स्थान भारत को दिया है। यहां पर आप भारत के अद्भुत कल्चर को देख रहे हैं।
स्वामी जी ने कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम् का मंत्र हमारे ऋषियों ने दिया परन्तु उसे वैश्विक स्तर पर हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने पहंचाया है। भारत का मंत्र है सद्भाव और समरसता है। स्वामी जी ने कहा कि इटरनेट व इनरनेट को साथ-साथ बढ़ाये यही भारत की शक्ति है। यह महोत्सव हमें पीस (शान्ति) का संदेश देता है। स्वामी जी ने कहा कि जब हम खुद के लिये सेल्फिश होते है तो अपने पूरे शरीर से प्रेम करते हैं, जब हम अपने परिवार के प्रति सेल्फिश होते है तो पूरे परिवार से प्रेम करते है परन्तु जब हम राष्ट्र के प्रति सेल्फिश होते है तो पूरे राष्ट्र से प्रेम करते है। इस महोत्सव में भारत की आत्मा दिखायी दे रही है।
आध्यात्मिक गुरू नम्रमुनि महाराज साहेब ने भगवान महावीर के वचनों को दोहराते हुये कहा कि जहां पर परिग्रह होता वहां पर शान्ति नहीं होती। परिग्रह बाहर का हो या आन्तरिक, वह हमें पीस से पॉल्यूशन की ओर ले जाता है। उन्होंने सदैव चेहरे पर मुस्कान रखने का संदेश दिया।
श्री अर्जुन राम मेघवाल जी ने विश्व आध्यात्मिक महोत्सव के अवसर पर उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत करते हुये कहा कि यह एक अद्भुत महोत्सव है जिसमें आध्यात्मिक स्तर पर स्वामी विवेकानन्द जी की शिकागो यात्रा से लेकर आज तक की आध्यात्मिक यात्रा का इतिहास का दर्शन यहां से कराया जा रहा है। उन्होंने भारत की इकोनामी व स्प्रिरिचुअल पावर की चर्चा की। संस्कृति और अध्यात्म भारत की सॉफ्ट पावर हैं! और इसके मूल में कहीं न कहीं ध्यान साधना की शक्ति है। मानसिक शांति के लिए ध्यान साधना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि भारत में योग, ध्यान, अध्यात्म व संस्कृति के कारण आध्यात्मिक पर्यटन का अद्भुत विकास हुआ है। उन्होंने बताया कि इस ‘वैश्विक आध्यात्मिक महोत्सव’ का आदर्श वाक्य जी-20 के सूत्र वाक्य ’वसुधैव कुटुंबकम’ पर ही आधारित है। सभी पूज्य संतों और साधकों ने आध्यात्मिक प्रदर्शनी का अवनोकन किया और विशेष सांस्कृतिक संगीत का आनंद लिया।