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इस अवसर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि वर्तमान युग में तकनीकी परिवर्तन की गति शायद अभूतपूर्व है। ये परिवर्तन नए अवसर तो पैदा कर रहे हैं, साथ ही नई चुनौतियाँ को भी जन्म दे रहे हैं। तकनीकी प्रगति शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य सेवा, संचार और ऊर्जा उत्पादन में परिवर्तन ला रही है। हालांकि, आधुनिक तकनीकों के दुरुपयोग से साइबर अपराध और ई-कचरे से पर्यावरण को होने वाला नुकसान बढ़ रहा है। एनआईटी जमशेदपुर जैसे प्रमुख हितधारकों से अपेक्षा की जाती है कि वे आम जनता और समाज पर आधुनिक तकनीकों के नकारात्मक प्रभावों को नियंत्रित करने और कम करने में हिस्सा लें। उन्हें न केवल समाधान खोजने चाहिए, बल्कि इन समाधानों को स्थायी और टिकाऊ बनाने के लिए अन्य संस्थानों और उद्योगों के साथ सहयोग भी करना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षण संस्थान केवल शिक्षा और डिग्री प्रदान करने के केंद्र नहीं हैं, बल्कि ये राष्ट्र के प्रमुख अनुसंधान केंद्र और ‘बौद्धिक प्रयोगशालाएँ’ भी हैं। यहीं पर देश के भविष्य का दृष्टिकोण आकार लेता है। राष्ट्रीय शिक्षा संस्थानों (एनआईटी) जैसे संस्थानों से शिक्षित इंजीनियरों को राष्ट्र निर्माण में भूमिका निभानी चाहिए, जो तकनीकी प्रगति का उपयोग मानव कल्याण के साधन के रूप में करें। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी उच्च शिक्षा संस्थान की प्रतिष्ठा का आकलन केवल उसकी रैंकिंग या रोज़गार प्रदान करने के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि संस्थान और उसके छात्रों द्वारा समाज और राष्ट्र के प्रति किए गए योगदान के आधार पर भी किया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा लक्ष्य 2047 तक विकसित भारत का निर्माण करना है। अनुसंधान, नवाचार और स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ावा देना तथा युवाओं को कुशल कार्यबल में विकसित करना इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय एवं माध्यमिक शिक्षा संस्थानों (एनआईटी) जैसे प्रमुख संस्थानों को अनुसंधान और नवाचार पर और अधिक ध्यान देना चाहिए। उनके योगदान से भारत ‘ज्ञान महाशक्ति’ के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर सकेगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार के प्रयास पारंपरिक क्षेत्रों के साथ-साथ रक्षा, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा जैसे गैर-पारंपरिक क्षेत्र भी युवाओं को उद्यम स्थापित करने के अवसर प्रदान कर रहे हैं। एनआईटी जमशेदपुर के छात्रों जैसे तकनीकी रूप से कुशल युवा इन अवसरों का उपयोग न केवल अपने लिए बल्कि दूसरों के लिए भी रोजगार सृजित करने में कर सकते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि विकसित भारत का सपना केवल ऊंची इमारतें बनाने या शक्तिशाली अर्थव्यवस्था विकसित करने से पूरा नहीं होगा, बल्कि एक ऐसे समाज के निर्माण से पूरा होगा जहां समाज के सबसे निचले स्तर के व्यक्ति को भी गरिमापूर्ण जीवन जीने के समान अवसर और साधन प्राप्त हों। उन्होंने कहा कि शिक्षा और ज्ञान तभी उपयोगी माने जाएंगे जब उनका लाभ आम जनता तक पहुंचे। उन्होंने उन्हें कहा कि बिना मन लगा कर किया गया आविष्कार केवल एक मशीन ही बना सकता है, जबकि मन से प्रेरित नवाचार समाज के लिए वरदान साबित होता है।