ऋषिकेश, 6 फरवरी। परमार्थ निकेतन में पंजाब विश्वविद्यालय से शोधार्थियों का एक दल आया। दल के सदस्यों ने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती से भेंट कर आशीर्वाद लिया तथा विश्व विख्यात गंगा आरती में सहभाग किया। पंजाब विश्व विद्यालय के शोद्यार्थियों ने परमार्थ निकेतन में होने वाली विभिन्न आध्यात्मिक गतिविधियों यथा यज्ञ, गंगा आरती, योग, ध्यान, आयुर्वेद और पंचकर्म के विषय में जानकारी प्राप्त की और जाना कि ऋषियों द्वारा अनुसंधान की गयी विधायें किस प्रकार हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। शोधार्थियों ने विश्व कल्याण के लिये परमार्थ निकेतन में प्रातः व सायं होने वाले यज्ञ के विषय में जानकारी प्राप्त की।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि यज्ञ हमारी सनातन संस्कृति का आधार और भारतीय वैदिक संस्कृति का स्तंभ भी है, जो वेदों की पवित्रता के माध्यम से पर्यावरण की शुद्धि का संदेश देता है। अथर्ववेद में कहा गया है कि असीमित ब्रह्मांड में प्रकृति सहित सभी प्राणी एक शाश्वत यज्ञ से उत्पन्न हुए हैं। पूज्य संतों ने सार्वभौमिक जीवन के कुछ बुनियादी सिद्धांतों को यज्ञ के माध्यम से हमें समझाया है। स्वामी जी ने कहा कि गंगा आरती, यज्ञ, सत्संग आदि केवल एक अनुष्ठान नहीं है बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है। स्व से अनंत के साथ एकजुट होने के साथ एकता का एहसास कराता है। सभी आध्यात्मिक गतिविधियाँ त्याग और दूसरों के साथ साझा करने का संदेश देती है ताकि हमारा जीवन, मन और आत्मा की शुद्धि भी बनी रहे। साथ ही स्वार्थ से ऊपर उठकर स्वैच्छिक त्याग, सेवा और कल्याण करने की शिक्षा हमें देती है। स्वामी जी ने कहा कि जीवन में इदम-न-मम अर्थात् यह मेरा नहीं है, लेकिन यह सर्वोच्च शक्ति द्वारा दिया गया और सर्वोच्च शक्ति के लिये है, यह भावना जागृत हो जाये तो सार्वभौमिक कल्याण सम्भव है। आध्यात्मिक गतिविधियाँ एक अभ्यास है जो हमारी चेतना के द्वार पर दस्तक देती है और हमें याद दिलाती है कि हमें क्या करना है और हमें प्रकृति व पर्यावरण के साथ कैसे आचरण करना है।
अगर हम देखे तो प्रकृति की रचना एक शाश्वत यज्ञ है और हम अपने जीवन को देखे तो हम दूसरों द्वारा प्रदान की गई चीजों से जीते हैं और हमारे जीवन में लगभग हर चीज दूसरों के श्रम से आती है। इसमें न केवल मनुष्य का श्रम समाहित है बल्कि यह संपूर्ण ग्रह; पारिस्थितिकी तंत्र और प्रकृति का श्रम समाहित है। हमारा जीवन ब्रह्मांड के साथ आदान-प्रदान से ही सम्भव है। आध्यात्मिकता हमें पारिस्थितिक संतुलन और प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण व्यवहार का संदेश देती है। प्रकृति अपने अटूट प्राकृतिक यज्ञ चक्र के माध्यम से हमें ‘इदं-न-मम’ सिखाती है। समुद्र अपना पानी बादलों को देता है और बदले में बादल बरसते हैं और वह जल वापस नदियाँ और झरने से होता हुआ पूरी पृथ्वी को जल से सिंचित करते हुये समुद्र में चला जाता है परन्तु उससे पहले सबकी प्यास बुझ जाती है, जिससे सृष्टि का सारा सौंदर्य निखर जाता है। इस पूरी प्रक्रिया के लिये किसी न किसी को त्याग करना पड़ता है उस त्याग की भावना को हमें आत्मसात करना होगा। स्वामी जी ने कहा कि अगर आज की युवा पीढ़ी आध्यात्मिकता की इन शिक्षाओं को समझ गयी तो वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर व्याप्त प्रदूषण की समस्याओं का समाधान प्राप्त किया जा सकता है। दल के सदस्यों को स्वामी जी ने आशीर्वाद स्वरूप रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया तथा सभी को पर्यावरण संरक्षण का संकल्प कराया।