यदि सिक्खों का इतिहास सही तरीके से लिख दिया जाए तो अपने आप सही हो जाएगा हिंदुओं का इतिहास: प्रो. योगेश सिंह
लंबे समय तक सिख इतिहास को भुलाया गया, अब इस बलिदान को याद कर रहा है पूरा देश: स. तरलोचन सिंह
नई दिल्ली : दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर इंडिपेंडेंस एंड पार्टीशन स्टडीज़ (CIPS) द्वारा ‘वीर बाल दिवस’ के उपलक्ष्य में साहिबजादों के सर्वोच्च बलिदान, उनके नैतिक पराक्रम और अद्वितीय वीरता पर केंद्रित एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक वाइस रीगल लॉज स्थित कन्वेंशन हॉल में में आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में पूर्व राज्यसभा सांसद एवं राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष सरदार तरलोचन सिंह उपस्थित रहे जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि यदि सिक्खों का इतिहास आज सही तरीके से लिख दिया जाए, तो हिंदुओं का इतिहास अपने आप सही हो जाएगा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार प्रकट करते हुए कहा कि यह उनकी प्रेरणा है कि आज पूरा देश इस महत्वपूर्ण दिन को आयोजित कर रहा है। प्रो. सिंह ने कहा कि यह गाथा केवल इतिहास की एक घटना नहीं, बल्कि बलिदान, त्याग, तपस्या और राष्ट्रप्रेम की पराकाष्ठा है। उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह जी के विराट व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पिता का ऐसा व्यक्तित्व ही था जिसने अपने अल्पायु पुत्रों को राष्ट्र के लिए बलिदान होने हेतु तैयार किया। आज यह एक बड़ा प्रश्न है कि यदि उस समय वे औरंगजेब के सामने झुक गए होते, तो क्या आज का भारत ऐसा होता जैसा हम देख रहे हैं? उन्होंने जोर देकर कहा कि वीर बाल दिवस सिक्ख शहादत को याद करने और उससे प्रेरणा लेने का दिन है। विश्व इतिहास में बलिदान की ऐसी कोई घटना न कभी हुई है और न कभी होगी। यह भारत को ‘भारत’ बनाने की गाथा है। उन्होंने यह भी कहा कि ‘सिक्खों के दस गुरु’ कहने की बजाय ‘हमारे दस गुरु’ कहना अधिक उचित है। बाबा जोरावर सिंह के शब्दों को याद करते हुए कुलपति ने कहा कि हम धर्म के लिए मरना सीख कर आए हैं, डरना नहीं; हम मृत्यु स्वीकार करेंगे लेकिन इस्लाम नहीं।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सरदार तरलोचन सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने विभाजन के दर्द को पहली बार याद कराया और उसी कड़ी में आज का यह दिन नई जागृति का परिचायक है। उन्होंने इतिहास के पन्नों पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि 1857 को आजादी की पहली लड़ाई माना जाता है, तो शिवाजी महाराज और महाराणा प्रताप का संघर्ष किस श्रेणी में आता है? उन्होंने कहा कि गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों ने बहुत छोटी आयु में जो सर्वोच्च बलिदान दिया, वह किसी भी क्रांति से बड़ा है। सरदार तरलोचन सिंह ने स्पष्ट किया कि हम किसी धर्म के खिलाफ नहीं हैं क्योंकि गुरु ग्रंथ साहिब में सभी बराबर हैं, लेकिन हम जबरन धर्मान्तरण के सख्त खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि यह विडंबना है कि लंबे समय तक इस इतिहास को भुलाया गया, लेकिन अब गर्व का विषय है कि पूरा देश इस बलिदान को याद कर रहा है। उन्होंने बंदा बहादुर के कष्टों और उनके अडिग समझौते न करने वाले व्यक्तित्व का भी स्मरण किया और कहा कि गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं ही भारत की आत्मा को जगाने वाली हैं।
इससे पूर्व स्वागत भाषण देते हुए CIPS के चेयरमैन प्रो. रवि प्रकाश टेकचंदानी ने बताया कि सरदार तरलोचन सिंह वर्ष 1969 से ही सिक्ख शहीदों के गौरव को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने वीर बाल दिवस की प्रासंगिकता पर चर्चा करते हुए कहा कि भारत के कण-कण में दिव्यता है। उन्होंने मध्यकालीन आक्रांताओं के अत्याचारों का जिक्र करते हुए कवि भूषण की कविताओं का उदाहरण दिया और बताया कि किस तरह शिवाजी और सिक्ख गुरुओं के बलिदान को साहित्य में पिरोया गया है। उन्होंने 21 से 26 दिसम्बर तक की उस गुरु परिवार की संघर्षपूर्ण यात्रा का विवरण दिया जिसमें साहिबजादों ने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए।
सी आई पी एस के निदेशक प्रो. रविंदर कुमार ने आभार प्रकट करते हुए कहा कि किसी राष्ट्र के लिए आध्यात्मिक शक्ति के साथ ही सैनिक शक्ति भी अनिवार्य है जिसे सिक्ख बलिदान की गाथाओं को पढ़कर समझा जा सकता है। औरंगजेब के शासनकाल में जब देश अत्याचारों और सामूहिक धर्मान्तरण के दौर से गुजर रहा था, तब भी साहिबजादों ने झुकना स्वीकार नहीं किया। धन-धान्य और सुरक्षित जीवन के प्रलोभनों को ठुकरा कर उन्होंने ठंडे बुर्ज की यातनाएं सही और अंततः जीवित दीवार में चुनवा दिए गए। यह बलिदान भारतीय संवैधानिक मूल्यों और धार्मिक स्वतंत्रता के उन सिद्धांतों की याद दिलाता है जो हर नागरिक को अपनी आस्था का मौलिक अधिकार देते हैं। उन्होंने उपस्थित समस्त अतिथियों के प्रति आभार प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम का कुशल संचालन सी आई पी एस की सह-निदेशक प्रो. ज्योति त्रेहन शर्मा द्वारा किया गया। इस अवसर पर साउथ कैम्पस की निदेशक प्रो. रजनी अब्बी, डीन ऑफ कॉलेजेज प्रो. बलराम पाणी, रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता और एस ओ एल की निदेशक प्रो. पायल मागो सहित विश्वविद्यालय व महाविद्यालयों के प्राध्यापक, प्राचार्य, शिक्षाविद, शोधार्थी और बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।